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MAAHE SHABAN KE BAARE ME...

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*MAAH E SHABAN SPECIAL*
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*आक़ा का महीना*#01/19
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
     रसूले अकरम ﷺ का शाबानुल मुअज़्ज़म के बारे में फरमान है : शाबान मेरा महीना है और रमज़ान अल्लाह का महीना है।
*_शाबान के 5 हरुफ़ की बहारे_*
     सुब्हान अल्लाह ! माहे शाबानुल मुअज़्ज़म की अज़्मतो पर कुर्बान ! इसकी फ़ज़ीलत के लिये इतना ही काफी है के हमारे आक़ा صلى الله عليه وسلم ने इसे " मेरा महीना" फ़रमाया।
     हज़रत गौषे आज़म رضي الله عنه लफ्ज़ "शाबान" के 5 हरुफ़ के मुतअल्लिक़ नकल फरमाते है :
★ शिन : से मुराद "शरफ" यानी बुज़ुर्गी
★ ऍन : से मुराद "उलुव्व्" यानि बुलंदी
★ बा : से मुराद "बीर" यानि एहसान व भलाई
★ अलिफ़ : से मुराद "उल्फ़त" और
★ नून : से मुराद "नूर" है
     तो ये तमाम चीज़े अल्लाह तआला अपने बन्दों को इस महीने में अता फरमाता है, ये वो महीना है जिस में नेकियों के दरवाज़े खोल दिये जाते है, बरकतों का नुज़ूल होता है, खताए मिटा दी जाती है और गुनाहो का कफ़्फ़ारा अदा किया जाता है, और हुज़ूर ﷺ पर दुरुदे पाक की कसरत की जाती है और ये नबिय्ये मुख्तार صلى الله عليه وسلم पर दुरुद भेजने का महीना है।
*✍गुन्यातू-तालिबिन, जी.1 स.341*
*✍आक़ा का महीना, स. 2-3*
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*आक़ा ﷺ का महीना* #02/19
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सहाबए किराम का जज़्बा_*
     हज़रते अनस बिन मालिक رضي الله تعالي عنه फरमाते है : माहे शाबान का चाँद नज़र आते ही सहाबए किराम तिलावते कुरआन की तरफ खूब मुतवज्जेह हो जाते, अपने अम्वाल् की ज़कात निकालते ताके गुरबा व मसाकिन मुसलमान माहे रमज़ान के रोज़े के लिये तैयारी कर सके.
     हुक्काम कैदियों को तलब करके जिस पर हद (सज़ा) क़ाइम करना होती उस पर हद क़ाइम करते, बकिय्या में से जिन को मुनासिब होता उन्हें आज़ाद कर देते.
     ताजिर अपने कर्जे अदा कर देते, दुसरो से अपने कर्जे वसूल कर लेते। (यु माहे रमज़ानुल मुबारक से क़ब्ल ही अपने आप को फारिग कर लेते)
     और रमज़ान का चाँद नज़र आते ही गुस्ल कर के (बाज़ हज़रात) एतिकाफ में बैठ जाते।
*✍गुण्यतुल तालिबिन जी.1 स.341*
*✍आक़ा का महीना, स. 3*
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*MAAH E SHABAN SPECIAL*
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*आक़ा ﷺ का महीना* #03/19
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_मौजूदा मुसलमानो का जज़्बा_*
سبحان الله !
पहले के मुसलमानो को इबादत का किस क़दर ज़ौक़ होता था ! मगर अफ़सोस ! आज कल के मुसलमानो को ज़्यादा तर हसुले माल ही का शौक है, पहले के सोच रखने वाले मुसलमान मुतबर्रिक अय्याम में रब्बुल अनाम की ज्यादा से ज़्यादा इबादत करके उसका कुर्ब हासिल करने की कोशिश करते थे, और आज कल के मुसलमान मुबारक दिनों, खुसुसन माहे रमज़ानुल मुबारक में दुन्या की ज़लील दौलत कमाने की नई नई तरकीबे सोचते है।
     अल्लाह अपने बन्दों पर महेरबान हो कर नेकियों का अजरो षवाब खूब बढ़ा देता है, लेकिन दुन्या की दौलत से महब्बत करने वाले रमज़ानुल मुबारक में अपनी चीज़ों का भाव बढ़ा कर अपने ही मुसलमान भाइयो में लूटमार मचा देते है।
     सद करोड़ अफ़सोस ! खैर ख्वाहिये मुस्लिमीन का जज़्बा दम तोड़ता नज़र आ रहा है !
*✍आक़ा का महीना, स.4*
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*MAAH E SHABAN SPECIAL*
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*आक़ा ﷺ का महीना* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_नफली रोज़ो का पसंदीदा महीना_*
      हमारे दिलो के चैन सरवरे कोनैन صلى الله عليه وسلم माह शाबान में कसरत से रोज़े रखना पसंद फरमाते.
     हज़रते अब्दुल्लाह बिन अबी कैसा رضي الله تعالي عنه से रिवायत है के उन्होंने उम्मुल मुअमिनिन आइशा सिद्दीका رضي الله عنها को फरमाते सुना : साहिब मेराज صلى الله عليه وسلم का पसंदीदा महीना शाबानुल मुअज़्ज़्म था के इस में रोज़े रखा करते फिर उसे रमज़ानुल मुबारक से मिला देते.
*सुनन इब्ने दाऊद, जी.2 स. 2431*
_*लोग इससे गाफिल है*_
     हज़रते उसामा बिन ज़ैद رضي الله تعالي عنه फरमाते है, मेने अर्ज़ की : या रसूलल्लाह ﷺ ! में देखता हु के जिस तरह आप शाबान में रोज़े रखते है इस तरह किसी भी महीने में नही रखते ?
     फ़रमाया : रजब और रमज़ान के बिच में ये महीना है, लोग इस से गाफिल है, इस में लोगो के आमाल अल्लाहु रब्बुल आलमीन की तरफ उठाए जाते है और मुझे ये महबूब है के मेरा अमल इस हाल में उठाया जाए के में रोज़ादार हु.
*✍आक़ा का महीना, स. 5*
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*MAAH E SHABAN SPECIAL*
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*आक़ा ﷺ का महीना* #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_मरने वालो की फेहरिस बनाने का महीना_*
     हज़रते आइशा सिद्दीका رضي الله عنها फरमाती है : ताजदारे रिसालत ﷺ पुरे शाबान के रोज़े रखा करते थे. फरमाती है के मेने अर्ज़ की : या रसूलल्लाह ﷺ ! क्या सब महीनो में आप के नज़दीक ज़्यादा पसंदीदा शाबान के रोज़े रखना है ?
   तो आप ने फ़रमाया : अल्लाह عزوجل इस साल मरने वाली हर जान को लिख देता है और मुझे ये पसंद है के मेरा वक़्ते रुखसत आए और में रोज़ादार हु.
*✍आक़ा का महीना, स. 5-6*
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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*आक़ा ﷺ का महीना* #06
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
_*आक़ा ﷺ शाबान के अक्सर रोज़े रखते थे*_
    बुखारी शरीफ में है हज़रते आइशा सिद्दीका रदियल्लाहु अन्हा फरमाती है के रसूलल्लाह ﷺ शाबान से ज्यादा किसी महीने में रोज़े न रखा करते बल्कि पुरे शाबान ही को रोजा रख लिया करते थे और फ़रमाया करते : अपनी इस्तिताअत के मुताबिक़ अमल करो के अल्लाह عزوجل उस वक़्त तक अपना फ़ज़ल नही रोकता जब तक तुम उकता न जाओ.
*✍सहीह बुखारी, जी.1 स. 648 हदिष : 1970*
*_भलाइयों वाली राते_*
उम्मुल मुअमिनीन हज़रते आइशा सिद्दीका रदियल्लाहु अन्हा फरमाती है, में ने नबिय्ये करीम ﷺ को फरमाते हुए सुना : अल्लाह عزوجل (खास तौर पर) 4 रातो में भलाइयो के दरवाज़े खोल देता है :
★ बकर ईद की रात
★ ईदुल फ़ित्र की रात
★ शाबान की 15वी रात के इस रात में मरने वालो के नाम और लोगो का रिज़्क़ और (इस साल) हज करने वालो के नाम लिखे जाते है.
★ अरफा की (यानि 8 और 9 जुल हिज्जा की दरमियानी) रात अज़ाने फज्र तक.
*✍तफ़सीरे दुर्रे-मन्सूर, जी. 7 स. 402*
*✍आक़ा का महीना, स. 8*
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*आक़ा का महीना* #07
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_नाज़ुक फैसले_*
      15 शाबानुल मुअज़्ज़्म की रात कितनी नाज़ुक है ! न जाने किस की क़िस्मत में क्या लिख दिया जाए ! बाज़ अवकात बन्दा गफलत में पड़ा रह जाता है और उस के बारे में कुछ का कुछ हो चूका होता है.
     गुण्यातुत्तालिबिन में है : बहुत से कफ़न धूल कर तैयार रखे होते है मगर कफ़न पहनने वाले बाज़ारो में घूम फिर रहे होते है, काफी लोग ऐसे होते है की उन की क़ब्रे खुदी हुई तैय्यार होती है मगर उन में दफन होने वाले खुशियो में मस्त होते है, बाज़ लोग हस रहे होते है हालांके उन की मौत का वक़्त करीब आ चूका होता है. कई मकानात की तामिरात का काम पूरा हो गया होता है मगर साथ ही उन के मालिक की ज़िन्दगी का वक़्त भी पूरा हो चुका होता है.
*✍गुण्यातुत्तालिबिन, जी.1 स. 348*
*✍आक़ा का महीना, स. 8-9*
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*आक़ा ﷺ का महीना* #08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_ढेरो गुनाहगारो की मग्फिरत होती है मगर...❓_*
     हज़रते आइशा सिद्दीका रदियल्लाहु अन्हा से रिवायत है, हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : मेरे पास जिब्रईल अलैहिस्सलाम आए और कहा ये शाबान की 15वी रात है इस में अल्लाह तआला जहन्नम से इतनो को आज़ाद फरमाता है जितने बनी क्लब की बकरियो के बाल है, मगर काफ़िर और "अदावत वाले" और रिश्ता काटने वाले और कपड़ा लटकाने वाले और वालिदैन की ना फ़रमानी करने वाले और शराब के आदि की तरफ नज़रे रहमत नहीं फरमाता.
*✍शोएबुल ईमान, जी.3 स. 384 हदिष : 3837*
     हदिशे पाक में कपड़ा लटकने वाले का जो बयान है, इस से मुराद वो लोग है जो तकब्बुर के साथ टखनों के निचे तहबंद या पाजामा वगैरा लटकाते है.
     करोड़ो हम्बलियो के अज़ीम पेशवा हज़रते इमाम अहमद बिन हम्बल رضي الله تعالي عنه ने हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने अम्र رضي الله تعالي عنه से जो रिवायत नकल की उस में कातिल का भी ज़िक्र है.
*✍आक़ा का महीना, स. 9-10*
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*आक़ा ﷺ का महीना* #09
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
_*हज़रते दावूद अलैहिस्सलाम की दुआ*_
     अमीरुल मुअमिनीन हज़रते मौला मुश्किल कुशा,अलिय्युल मुर्तज़ा शेरे खुदा करम अल्लाहु तआला शाबानुल मुअज़्ज़म की 15वी रात यानि शबे बारात में अक्सर बाहर तशरीफ़ लाते.
     एक बार इसी तरह शबे बरात में बाहर तशरीफ़ लाए और आसमान की तरफ नज़र उठा कर फ़रमाया : एक मर्तबा अल्लाह के नबी हज़रते सय्यिदुना दावूद अलैहिस्सलाम ने शाबान की 15वी रात आसमान की तरफ निगाह उठाई और फ़रमाया : ये वो वक़्त है के इस वक़्त में जिस शख्स ने कोई भी दुआ अल्लाह से मांगी उस की दुआ अल्लाह ने कबूल फ़रमाई और जिस ने मग्फिरत तलब की अल्लाह ने उस की मग्फिरत फ़रमा दी बशर्ते के दुआ करने वाला उश्शार (ज़ुल्मन टेक्स लेने वाला), जादूगर, काहिन और बाजा बजाने वाला न हो,
     फिर ये दुआ की : ऐ अल्लाह ! ऐ दाऊद के परवर दिगार ! जो इस रात में तुज से दुआ करे या मग्फिरत तलब करे तू उस को बख्श दे.
*✍आक़ा का महीना, स. 10-11*
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*आक़ा ﷺ का महीना* #10
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_महरूम लोग_*
      शबे बरात बेहद अहम रात है, किसी सूरत से भी इसे गफलत में न गुज़ारा जाए, इस रात खुसुसिय्यत के साथ रहमतो की छमाछम बरसात होती है। इस मुबारक शब में अल्लाह "बनी क़ल्ब" की बकरियो के बालो से भी ज्यादा लोगो को जहन्नम से आज़ाद फ़रमाता है।
     किताबो में लिखा है : क़बिलए बनी क़ल्ब क़बाइले अरब में सब से ज्यादा बकरिया पालता था।
     आह ! कुछ बद नसीब ऐसे भी है जिन पर इस शबे बरात यानि छुटकारा पाने की रात भी न बख्शे जाने की वईद है। हज़रते इमाम बेहकी शाफ़ेई अलैरहमा "फ़ज़ाइलुल अवक़ात" में नकल करते है : रसूले अकरम ﷺ का फरमाने इबरत निशान है : 6 आदमियो की इस रात भी बख्शीश नहीं होगी।
1 शराब का आदि
2 माँ बाप का ना फरमान
3 ज़ीना का आदि
4 कते तअल्लुक़ करने वाला
5 तस्वीर बनाने वाला
6 चुगल खोर इसी तरह काहिन, जादूगर, तकब्बुर के साथ पाजामा या तहबन्द टखनों के निचे लटकाने वाले और किसी मुसलमान से बुग्ज़ो किना रखने वाले पर भी इस रात मग्फिरत की सआदत से महरूमी की वईद है,
     चुनान्चे तमाम मुसलमानो को चाहिये के इन गुनाहो में से अगर मआज़अल्लाह किसी गुनाह में मुलव्वत हो तो वो बिल खुसुस उन गुनाहो से और बिल उमुम हर गुनाह से शबे बरात के आने से पहले बल्कि आज और अभी सच्ची तौबा कर ले, और अगर बन्दों की हक़ तलफिया की है तो तौबा के साथ उन की मुआफ़ी तलाफि की तरकीब फ़रमा ले।
*✍आक़ा का महीना, 11,12*
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█    Shabe Bara'at In Sha Allah Baroje *Jume'arat* ( Thursday ) 11/05/2017 Ko Hogi....
█    Roza 12/05/2017 Ko Hoga....
. Next Thursday ( Jume'arat ) Ko Ye Amal Khas Kare Bataye Gaye Waqt Par.....                
                  
     असर मगरीब के बीच में गुसल करे 15 वी शाबान की इबादत की नीय्यत से तो पानी के हर कतरे के बदले 700 रका'त नफ़ील नमाज़ का सवाब मीलेगा*
          सुरज डूबने से पहेले *40 बार "ला हवला वला कुव्वत इल्ला बिल्लाहील अलीय्यील अज़ीम* "पड़े , तो खुदा ता'ला उसके 40 साल के गुनाह माफ़ कर देगा..
➖ *मगरीब की नमाज़ के बाद* ➖
    
 *- दो रका'त नमाज़ उम्रे दराज़ की निय्यत से पड़े फ़ीर 1 मरतबा सुरह यासीन शरीफ़ पड़े*
 *- दो रका'त नमाज़* *रोज़ी मे बरकत की निय्यत से पड़े फ़ीर 1 ,बार सुरह यासीन शरीफ़ पड़े.*
 *- दो रका'त नमाज़* *बीमारी बला व मुसीबत दुर करने की निय्यत से पडे़ फ़ीर 1 बार सुरह यासीन शरीफ़ पड़े*
 *फ़ीर 1 बार दुआ ए निश्फुश्शाबान पड़े*
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    *ʀєαd,ғσʟʟσɯ αɳd ғσʀɯαʀd*  ╘═━┅━┅━┅━┅┅━┅┅━┅┅━┅━┅═╛
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❤ *MAAH E SHABAN SPECIAL* ❤
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*आक़ा ﷺ का महीना* #11
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_फायदे की बात_*
     शबे बरात में आमाल नामे तब्दील होते है लिहाज़ा मुम्किन हो तो 14 शाबानुल मुअज़्ज़्म को भी रोज़ा रख लिया जाए ताके आमाल नाम के आखिरी दिन में भी रोज़ा हो।
     14 शाबान को असर की नमाज़ बा जमाअत पढ़ कर वही नफ्लि एतिकाफ कर लिया जाए और नमाज़े मगरिब के इन्तिज़ार की निय्यत से मस्जिद ही में ठहरा जाए ताके आमाल नामा तब्दील होने के आखिरी लम्हात में मस्जिद की हाज़िरी, एतिकाफ और इन्तिज़ारे नमाज़ वग़ैरा का षवाब लिखा जाए। बल्कि जहे नसीब ! सारी ही रात इबादत में गुज़ारी जाए।
*_15 शाबान का रोज़ा_*
*15 SHABAN KA ROZA 12-MAY-2017 KO HOGA*
     हज़रते अलिय्युल मुर्तज़ा शेरे खुदा से मरवी है के नबिय्ये करीम ﷺ का फरमाने अज़ीम है : जब 15 शाबान की रात आए तो उसमे क़याम (इबादत) करो और दिन में रोज़ा रखो। बेशक अल्लाह तआला गुरुबे आफताब से आसमान दुन्या पर ख़ास तजल्ली फ़रमाता और कहता है : है कोई मुझसे मग्फिरत तलब करने वाला के उसे बख्श दू ! है कोई रोज़ी तलब करने वाला के उसे रोज़ी दू ! है कोई मुसीबत ज़दा के उसे आफिय्यत अता करू ! है कोई ऐसा ! है कोई ऐसा !
     और ये उस वक़्त तक फ़रमाता है के फ़ज्र तुलुअ हो जाए।
*✍सुनन इब्ने माजा, जी.2 स.160 हदिष : 1388*
*✍आक़ा का महीना, स.14*
*षवाब की निय्यत से शेर करे*
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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*आक़ा ﷺ का महीना* #12
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सब्ज़ परचा_*
    अमीरूल मुअमिनीन हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ رضي الله تعالي عنه एक मर्तबा शाबानुल मुअज़्ज़्म की 15वी रात यानि शबे बराअत में इबादत में मसरूफ़ थे। सर उठाया तो एक "सब्ज़ परचा" मिला जिस का नूर आसमान तक फेला हुवा था, उस पर लिखा था "खुदाए मालिक व ग़ालिब की तरफ से ये जहन्नम की आग से आज़ादी का परवाना" है जो उस के बन्दे उमर को अता हुवा है।
*✍तफ़सीरे रुहुल बयान, 8/402*
     इस हिकायत में जहा उमर की अज़मत व फ़ज़ीलत का इज़हार है वही शबे बराअत की रिफअत व शराफत का भी ज़ुहुर है।
     अल्हम्दुलिल्लाह ये मुबारक शब् जहन्नम की भड़कती आग से बरात यानी छुटकारा पाने की रात है इसी लिये इस रात को *शबे बराअत* कहा जाता है।
*✍आक़ा का महीना, स.15*
*षवाब की निय्यत से शेर करे*
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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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        *QABARSTAN ME*
       *HAZRI KE AADAB*
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     जो कब्रस्तान में दाखिल हो कर ये कहे : अय अल्लाह ! अय गल जाने वाले जिस्मो और बोसीदा हड्डियों के रब ! जो दुन्या से ईमान की हालत में रुखसत हुए तू उन पर अपनी रहमत और मेरा सलाम पहोचा दे। तो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से ले कर इस वक़्त तक जितने मोमिन फौत हुए सब उस दुआ पढ़ने वाले के लिये दुआए मग्फिरत करेंगे।
     हुज़ूर ﷺ का फरमाने शफ़ाअत निशान है : जो शख्स कब्रस्तान में दाखिल हुवा फिर उस ने सूरतुल फातिहा, सूरतुल इखलास और सुरतुत्तकासुर पढ़ी फिर ये दुआ मांगी : या अल्लाह ! मेने जो कुछ कुरआन पढ़ा उसका षवाब इस कब्रस्तान के मोमिन मर्दों और मोमिन औरतो को पहोचा। तो वो तमाम मोमिन क़यामत के रोज़ उस इसाले षवाब करने वाले के सिफारिशी होंगे।
*✍शरहु स्सुदुर् स.311*
     हदीशे पाक में है : जो 11 बार सूरतुल इखलास पढ़ कर इसका षवाब मुर्दो को पहोचाए, तो मुर्दो की गिनती के बराबर उस इसाले षवाब करने वाले को षवाब मिलेगा।
*✍दुर्रे मुख्तार, जी.3 स.183*
     क़ब्र के ऊपर अगरबत्ती न जलाई जाए इस में बे अदबी और बद फाली है (और इस से मैयत को तकलीफ होती है), हा अगर हाज़रिन को खुशबु पोहचाने के लिये लगाना चाहे तो क़ब्र के पास खाली जगह हो वहा लगाए के खुशबु पहोचाना महबूब है।
*✍मूलख्खसन फतावा रज़विय्या मुखर्रजा, जी.9 स.482,525*
     आला हज़रत अलैरहमा एक और जगह फरमाते है : सहीह मुस्लिम शरीफ में हज़रते अम्र बिन आस से मरवी, उन्हों ने दमे मर्ग (यानि वक़्ते वफ़ात) अपने फ़रज़न्द से फ़रमाया : जब में मर जाउ तो मेरे साथ न कोई नौहा करने वाली जाए न आग जाए।
*✍सहीह मुस्लिम, स.70 हदिष:192*
     क़ब्र पर चराग या मोमबत्ती वग़ैरा न रखे के ये आग है, और क़ब्र पर आग रखने से मैय्यत को तकलीफ होती है,
*✍आक़ा का महीना, स.29*
     कई मज़ाराते औलिया पर देखा गया है के ज़ाऐरीन की सहूलत की खातिर मुसलमानो की क़ब्रे तोड़ फोड़ कर के फर्श बना दिया जाता है, ऐसे फर्श पर लेटना, चलना, खड़ा होना, तिलावत और ज़िकरो अज़कार के लिये बैठना वग़ैरा हराम है, दूर ही से फातिहा पढ़ लीजिये।
     ज़ियारते क़ब्र मय्यित के चेहरे के सामने खड़े हो कर, क़ब्र वाले की क़दमो की तरफ से जाए के उस की निगाह के सामने सिरहाने से न आए के उसे सर उठा कर देखना पड़े।
*✍फतावा रज़विय्या मुखर्रजा, जी.9 स.532*
     कब्रस्तान में इस तरह खड़े हो के किब्ले की तरफ पीठ और क़ब्र वालो के चेहरों की तरफ मुह हो इस के बाद कहिये...
     ऐ क़ब्र वालो ! तुम पर सलाम हो, अल्लाह हमारी और तुम्हारी मग्फिरत फरमाए, तुम हम से पहले आ गए और हम तुम्हारे बाद आने वाले है।
*✍फतावा आलमगिरी, जी.5 स.350*
*✍आक़ा का महीना, स.28*
     नबीये करीम صلى الله عليه وسلم का फरमाने अज़ीम है : मेने तुम को ज़ियारते कूबर से मना किया था, अब तुम क़ब्रो की ज़ियारत करो के वो दुन्या में बे रगबति का सबब है और आख़िरत की याद दिलाती है।
*✍सुनन इब्ने माजाह, जी.2 स.252 हदिष: 1571*
     वलियुल्लाह के मज़ार शरीफ या किसी भी मुसलमान की क़ब्र की ज़ियारत को जाना चाहे तो मुस्तहब ये है के पहले अपने मकान पर गैर मकरूह वक़्त में 2 रकअत नफ्ल पढ़े, हर रकअत में सूरतुल फातिहा के बाद एक बार आयतुल कुरसी और 3 बार सूरए इखलास पढ़े और इस नमाज़ का षवाब साहिबे क़ब्र को पहोचाए, अल्लाह तआला उस फौत सुदा बन्दे की क़ब्र में नूर पैदा करेगा और इस षवाब पोहचाने वाले शख्स को बहुत ज़्यादा षवाब अता फरमाएगा।
*✍फतवा आलमगिरी, जी.5 स.350*
     मज़ार शरीफ या क़ब्र की ज़्यारत के लिये जाते हुए रस्ते में फ़ुज़ूल बातो में मशगूल न हो। कब्रस्तान में आप उस रस्ते से जाए, जहां माज़ी में कभी भी मुसलमानो की क़ब्रे न थी, जो रास्ता नया बना हुवा हो उस पर न चले, रद्दुल मुहतार में है कब्रस्तान में क़ब्रे पाट कर जो नया रास्ता निकाला गया हो उस पर चलना हराम है। बल्कि नऐ रस्ते का सिर्फ गुमान ग़ालिब हो तब भी उस पर चलना ना जाइज़ व गुनाह है।
*✍दुर्रे मुख्तार, जी.3 स.183*
*✍आक़ा  का महीना, स.27*
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              *Social Media ka dhoka*
                Or Shabe Bra'at ka
                   *Muafi Naama*
Jese Jese shabe bra'at qareeb aa rahi he wese whatsapp or digar social media par *Muafi Naama* bahut post ho raha he, bahut se log bade Ahtemam se bhej rahe hein or samajhte hein ke hamne ek bahut bade farize ko anjaam de diya.
*Haqiqat me ye ek bahut bada dhoka he.*
Ye baat sahih he shabe bra'at me jab Aam magfirat ka ayeLan hota he to kuch kamnaseeb is raat ki rahmat wa barkat se mahroom reh jaate hein, un me *Qata Rahmi* karne wala bhi he. Is liye log Is raat ke aane se pehle hi muaafi mang lete hein. Ye ek bahut achhi baat he, Lekin…
① shabe bra'at hi ka kyu intezar karein, maut kabhi bhi aa sakti he, agar kisi musalmaan ka dil dukhayaa he to foran *muaafi* maang lein.
② Rishtedaro se sila rahmi ka hukm he, jese *maa baap bhaai bahan dada dadi nana nani shohar biwi or qaribi rishtedaar* dil to in logo ka tode or whatsapp par un logo se muaafi maange jin ko kabhi dekha bhi nahi, jin ke sath koi rishtedari nahi, jin ka kabhi dil toda nahi……!!!!
*Ye kesi Aqalmandi he  ?*
*maa baap bhaai bahan dada dadi nana nani shohar biwi or qaribi rishtedaar* rishtedaro se muaafi mange phir dusro ka Rukh karein.
③ Agar waqai kisi ki dilshikni hui he to pehle us ki minnato samajat karein, us ka dil khush karein, maali nuqsan pohchaya he to us ki bharpaai karei phir *Muaafi Naama* likhein.
➧Is tarah sirf whatsapp wagera ke rasmi msgs *Muaafi Naama* nahi balke us ka *Mazaak* he.
Aaj musalmano ko aapasi jhagre khatm kar ke ikhtilaaf ko door karte huwe ittihaad ka mahol banane ki zarurat he, is ke liye *sachchi muaafi* zaroori he. Allah hame taufeeq ataa farmaae. (Ameen)
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